Tuesday 3 September 2013

गुलमोहर के गाँव

                                                                                                                                             









चांदनी में खो गए हैं                                                                          
गीत यूँ मधुमास के
छंद ऋतुओं ने रचे हैं
कुंकुमी आकाश के.

 

किस सपनों में खोए
चले दूर के गाँव
सतरंगी खुशियों की चाहत
मिले नेह की छांव.

 

उम्र के वन में विचरते थम गए
थके हुए दो पांव
पूछते हैं फासले अब
दूर कितने गुलमोहर के गाँव.

19 comments:

  1. Replies
    1. सादर धन्यवाद ! रीना जी ,आभार .

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  2. उम्र के वन में
    विचरते थम गए
    थके हुए दो पांव
    पूछते हैं फासले अब
    दूर कितने गुलमोहर के गाँव.
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ .

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  3. गुलमोहर के गाँव: इस गंतव्य तक पहुंचे पांव!!

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    1. सादर धन्यवाद ! अनुपमा जी ,आभार .

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  4. सादर धन्यवाद ! आभार .

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  5. बहुत उत्कृष्ट हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!
    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |

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  6. बहुत अच्छी लगी रचना ...

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  7. बहुत अच्छी कविता.

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  8. ☆★☆★☆


    चांदनी में खो गए हैं
    गीत यूँ मधुमास के
    छंद ऋतुओं ने रचे हैं
    कुंकुमी आकाश के.

    किस सपनों में खोए
    चले पिया के गाँव
    सतरंगी खुशियों की चाहत
    मिले प्यार की छांव.

    आहाऽहऽऽ…!
    बहुत सुंदर गीत लिखा है आपने आदरणीय राजीव कुमार झा जी
    आनंद आ गया...
    सुंदर रचना के लिए हृदय से साधुवाद


    शुभकामनाओं मंगलकामनाओं सहित...
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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    1. सादर धन्यवाद ! आदरणीय राजेंद्र जी .आभार .

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  9. आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी......आपको फॉलो कर रहा हूँ |

    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-

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    1. सादर धन्यवाद ! संजय जी.आभार .

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  10. बहुत सुन्दर रचना

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