Sunday 27 October 2013

कोई बात कहो तुम

                                                                   
                                                                                  मध्यम मध्यम है चाँद
रौशनी गुमशुम
मध्यम हैं धड़कनें
कोई बात कहो तुम

बरसात भी है धीमी धीमी
बौछार हौले हौले
भींगा हमारा दामन
साथ भी थे तुम

भर्राए हुए लफ्ज
वक्त का ठहरना
कांपते लबों के
बोल न थे कम

छलके हुए सागर
आँखों के किनारे
पार उतर पाएँगे
क्या ख्वाब हमारे 

Friday 11 October 2013

प्रिय प्रवासी बिसरा गया

शरद ऋतु  में हर  साल हजारों ,लाखों की  संख्या में साईबेरियाई प्रवासी पक्षी
लाखों मील की  दूरी तय कर भारत और अन्य एशियाई देशों में आते हैं .
शरद ऋतु की समाप्ति के पश्चात् क्या सभी वापस लौट पाते हैं ?
कुछ भटक जाते हैं ,तो कुछ अपनों से फिर नहीं मिल पाते .

कितने उसके संगी छूटे
कितने उसके साथी छूटे
जो छूट गए फिर कहाँ मिले
पर इन बिछड़ों पर
कब अपना शोक मनाता है
(बच्चन जी की कविता के तर्ज पर)












फिर आ गई है बरसात                                                                        
तुम न  आए 
आती रही तुम्हारी याद  
तुम न आए 
   
   छा रही काली घटा 
   चपला चमकती 
   काश ! तुम होते यहाँ पर 
   बाजुओं में तुम्हारी आ सिमटती 

रह गया रोकर ह्रदय 
आँखें न  रोई 
बीती यादों में तुम्हारे 
न जाने कब से खोई    
   
   हुई मूक वाणी 
   दर्द गहरा गया 
   पूछती हूँ आप अपने से 
   क्या प्रिय प्रवासी बिसरा गया ?


Tuesday 1 October 2013

पुरानी डायरी के फटे पन्ने











पुरानी डायरी के फटे पन्ने
अनायास आ जाते हैं सामने
बीती यादों को कुरेदती
दुःख - दर्द को सहेजती
बेरंग जिंदगी को दिखा जाते
पुरानी डायरी के फटे पन्ने

बीते लम्हों को भुलाना
गर होता इतना आसां
कागजों पर लिखे हर्फ़ को
मिटाना होता गर आसां

जिंदगी न होती इतनी बेरंग
इन्द्रधनुषी रंगों में मिल जाता
जीवन के विविध रंग
कुछ सुख के, कुछ दुःख के
जो बिताये तेरे संग  
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