Saturday 31 January 2015

रंग दिखाती है जिंदगी



कैसे-कैसे रंग दिखाती है जिंदगी
कभी हंसाती कभी रुलाती है जिंदगी

सफ़र ये कैसा है रूह भी थकने लगी
मील के पत्थरों से टिककर हांफती है जिंदगी

नींद के आगोश में कोई जाए कब तक
एक आहट से सहमकर जागती है जिंदगी

दुश्वारियों के बियाबां में घिरने लगे
बंद दरवाजों से सहमकर झांकती है जिंदगी

च्ची नींद में ज्यों ख्वाब सताने लगे
किस बहाने आँखों में झांकती है जिंदगी

उसकी चाल से चाल न मिला पाया कभी
‘राजीव’ रेस के घोड़े सी भागती है जिंदगी 


Saturday 24 January 2015

वसंत में बौराया है मन


वसंत में बौराया है मन
फगुनाहट की आहट है
पीले सरसों के गंध सुगंध से
उल्लासित कर जाता है मन

वसंत में बौराया है मन

वन उपवन टेसू फूले
वसंत के सज गए मेले
बर्फीले सफ़ेद चादरों से
ढँक जाता है तन मन

वसंत में बौराया है मन

नभ में विहग कलरव करते
बूँद बूँद पत्तों से झरते
मधुमय मधुमास सजाकर
उमंग बढ़ा जाता है मन

वसंत में बौराया है मन

हरियाली से तन मन रीता
रंग सुगंध से कौन अछूता
सोंधी महक धरा से उठती
खिल उठता है उपवन कानन

वसंत में बौराया है मन

Tuesday 20 January 2015

मन का अनुराग



फिर से खिले टेसू
फिर से महकी
मन की गलियां
प्यार की गंध लिए
आँचल में
सजा बंदनवार

मन का अनुराग सभी
दृष्टि में निचुड़ गया
सतरंगी सपनों का
सागर उमड़ गया
बिखर गई अंतस तक
केसरिया चांदनी

नीलकंवल छवि हुई
हंसी के संतूर बजे
शब्द-शब्द झरे जैसे
मदिरा मधुर अंगूर उगे


Thursday 15 January 2015

फासले कब मिटा करते हैं


                 हम जब भी मिला करते हैं           
क्यों लोग गिला करते हैं
कदम तपती राहों पर कब थमते हैं
फूल प्यार के खिजां में खिला करते हैं

तनहाइयों से डर क्यूँ जाते हो
आँखों के कटोरों को नम क्यों कर जाते हो
फासले जमीं-आसमां के कब मिटा करते हैं
दर्दे दिल यूँ ही बढ़ा करते हैं

तस्वीर तेरी आँखों से न हट पाती है
जिंदगी तुम बिन न कट पाती है
रंजिशों में उम्र बिता करते हैं 
'राजीव' जख्म दिल के अश्कों से सिला करते हैं 


Saturday 10 January 2015

तेरी आँखें


                                                 
                      इक महका ख्वाब है तेरी आखें               मेरे ख़त का जबाब है तेरी आँखें
पलकें करें सजदा चाहत बनकर
अदब का आदाब है तेरी आँखें

जुबां का मेरे समझ लेती हैं पैगाम
मेरे दिल की किताब हैं तेरी आँखें
रफ्ता-रफ्ता आगाज शबे महफ़िल का
शोख माहताब हैं तेरी आँखें

कितने ही मयकश हुए दीवाने
गुस्ताखियों से आबाद हैं तेरी आँखें
थरथराने लगी लौ शम्मा की
दो जलते चिराग हैं तेरी आँखें

चाँद भी छूप गया बादलों की ओट
सूरज सी आफ़ताब हैं तेरी आँखें
झुकी-झुकी नजरों में समायी हया
‘राजीव’ अनुराग हैं तेरी आँखें 

Saturday 3 January 2015

एक और वर्ष बीत गया


एक और वर्ष बीत गया
जिंदगी का हिसाब-किताब लगाके रखना

क्या खोया,क्या पाया कुछ याद नहीं
उम्मीदों का चराग जलाये रखना

टिमटिमाते दिये को बुझा देते हैं हवा के झोंके
हथेलियों में लौ को छुपाये रखना

दूर कहीं गूंजी कोयल की कूक
अश्कों से दामन को भिंगोकर रखना

वक्त बड़ा बेरहम है नहीं सुनता फरियादें
बीती हुई यादों को सीने से लगाये रखना

खतो-किताबत का न रहा वो जमाना
 पीले लिफाफों को किताबों में छुपाकर रखना

यादों के नश्तर दिल में चुभ जाये न कहीं
अपने जख्मों को सबसे छुपाकर रखना

भींगी आँखें बता देती हैं दिल के राज
हाले दिल सबसे न बयां करना

दिल के दरवाजे पे कोई दस्तक देता ही नहीं
अपने अरमानों को सुलगने से बचाए रखना

आँखों में संजोये सपने,दिल में बसाये अरमां
पूरा होने का सबब है,खुशियों को छिपाए रखना

अंतिम प्रहर होने को है,कारवां छूटा राजीव
यादों के उजाले को सीने से लगाये रखना

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...