Tuesday 20 January 2015

मन का अनुराग



फिर से खिले टेसू
फिर से महकी
मन की गलियां
प्यार की गंध लिए
आँचल में
सजा बंदनवार

मन का अनुराग सभी
दृष्टि में निचुड़ गया
सतरंगी सपनों का
सागर उमड़ गया
बिखर गई अंतस तक
केसरिया चांदनी

नीलकंवल छवि हुई
हंसी के संतूर बजे
शब्द-शब्द झरे जैसे
मदिरा मधुर अंगूर उगे


14 comments:

  1. बहुत खूब ... टेसू के फूल की मादक महक मन में उतर जाती है ...
    बहुत खूब ...

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  2. नीलकंवल छवि हुई
    हंसी के संतूर बजे
    शब्द-शब्द झरे जैसे
    मदिरा मधुर अंगूर उगे
    बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना है राजीव भाई,
    आपके लेख जितने सुन्दर होते है कवितायें भी उतनी ही सुन्दर
    होती है !

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  3. खूबसूरत रचना !
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है

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  4. सुन्दर रचना साभार! आदरणीय राजीव जी!

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  5. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना।

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  6. सुंदर भावपूर्ण

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  7. सुंदर भावाभिव्यक्ति....

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  8. अति सुन्दर भाव ......
    http://savanxxx.blogspot.in

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  9. नीलकंवल छवि हुई
    हंसी के संतूर बजे
    शब्द-शब्द झरे जैसे
    मदिरा मधुर अंगूर उगे

    वाह बहुत सुंदर भावों से सजी रचना।

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