Saturday 28 February 2015

ईमान बिकता नहीं


                                                                   
                            
यहां चेहरे तो लाखों हैं इंसां मगर दिखता नहीं
  पत्थर हाथ में न रखो शीशे का मकां मिलता नहीं 

आदमी आदमी में जबसे भेद होने लगा है 
हाथ मिलता है दिल मगर मिलता नहीं

दोस्त कौन है और कौन है दुश्मन
जानते सब हैं कोई मगर कहता नहीं

जुनूने इश्क के रंग भी अजीब हैं
दर्द तो देता है दवा मगर देता नहीं

खरीदने बिकने की बात क्यों करता है
कैसे खरीदोगे ईमान मगर बिकता नहीं

दरिया किस तरह पार करोगे ‘राजीव’
कश्ती है साहिल मगर दिखता नहीं 
                                                                                                       
       

Saturday 21 February 2015

क्यों वादे करते हैं


                                                               
                              
 अपनों से दिल टूट गया गैरों में हम चलते हैं
सुनने वाला कोई नहीं ख़त्म कहानी करते हैं

उम्र भर रस्ता देखा आंखें भी पथराती रहीं
इस राह आना ही नहीं क्यों रस्तों को तकते हैं

वादा करके भूलने वाले इसकी चुभन वे क्या जानें
पूरा होने का सबब नहीं फिर क्यों वादे करते हैं

 बंद लबों पर अनकही बातें कहने को बेताब रहें
मिलने पर लब हिले नहीं ठंढी आहें भरते हैं

दिल के दीवाने मौत से कब डरने लग जाएं
‘राजीव’ जीने वालों का हाल सुनाते फिरते हैं 
                                                                                                                

Saturday 14 February 2015

दिल का मलाल क्या कहा जाए


                           
                   
साथ गर आपका जो मिल जाए
सफ़र जिंदगी का आसां से कट जाए

मन का बंद दरवाजा खुलने को है
खुशबुओं की राह से जो गुजरा जाए

 मौसम सर्दियों का जाने लगा है
धूप भी इतराती इठलाती आए

हल हो जाएगा खुदबखुद एक दिन
मसलों को सवालों की तरह रखा जाए

अंधेरों में ढूंढ़ते रहते हैं जाने क्या
उजालों का हाल क्या कहा जाए

लोग कहते हैं आंसू पानी है
‘राजीव’ दिल का मलाल क्या कहा जाए 
                                                                                                                

Saturday 7 February 2015

तनहा शाम है



न चैन तुम्हें है
न हमें आराम है
दोनों की सुबह उदास
और तनहा शाम है

कभी दर्द बनकर
कभी दवा बनकर
रह गई उम्र
फ़लसफ़ा बनकर

रंजिश न बढ़ा
न रह जाए
हर मुलाकात
फासला बनकर 
    
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