Wednesday 29 April 2015
Saturday 11 April 2015
उन्मुक्त परिंदे
कल की चिंता से मुक्त
आज के सुख में डूबे
परिंदों को नहीं परवाह
जिंदगी की कड़वाह्टों की
सूखे पत्तों को
हांक रही मंद हवा
मोहपाश में जकड़ी हुई
हलकी और भारहीन
रेशम के कपास सी
रेशा,रेशा,महीन
उड़ी जा रही
विस्तृत गगन में
सूखे दरख्तों के
अलसाये पत्ते
पीले,कत्थे,भूरे,मटमैले
रंगबिरंगे बूंदों से
बरस रहे
सिर पर
ज्यों महावर
कुछ ऐसे ही लम्हे
ज्यों यायावर !
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Saturday 4 April 2015
मनुहार वाले दिन
भर गए आकाश
भूरे बादलों से
रात आलोकित हुई
अब बिजलियों से
खिड़कियों से आ रही
चंचल हवाएं
यादों के गलियारों से
झांकते
मनुहार वाले दिन
ओस में भींगे
क्यारियों में पुष्प
भ्रमरों को नए
संवाद देता
बूंद से बोझिल
सलोनी पत्तियां भी
हैं बजाती जा रही अब
पायलें रुनझुन
आ गए अब
मनुहार वाले दिन
डालियों पर
गूंजती हैं कोयलों के
अनवरत से स्वर
बादलों की ओट में
छुप रही चांदनी
मंद गति से
आ रही छनछन
आ गए अब
मनुहार वाले दिन
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