मजहब के नाम पर लोग लड़ते
रहे इंसानियत रोज दफ़न होती रही
सजदे करते रहे अपने अपने
ईश्वर के
सूनी कोख मां की उजड़ती रही
मूर्तियों पर बहती रही गंगा
दूध की
दूध के बिना बचपन बिलखती
रही
लगाकर दाग इंसान के
माथे पर
हैवानियत इंसान को डसती रही
किस किस को कैसे जगाएं
‘राजीव’
इंसानियत गहरी नींद में सोती रही
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