Thursday 27 August 2015

यूँ नहीं मिला होता



गर तुमसे यूँ नहीं मिला होता
कोई खटका दिल में नहीं हुआ होता


तुम्हें भुलाने की लाख कोशिश की मैंने
गर मेरे दिल में नश्तर नहीं चुभोया होता


दोस्ती-दुश्मनी में फर्क मिटा दिया तुमने
गर अहदे वफ़ा का सिला नहीं दिया होता


रास्ते का पत्थर जो समझ लिया तुमने
गर ठोकर में न उड़ा दिया होता


हर किसी पे एतबार नहीं करना ‘राजीव’
गर हर मोड़ पर धोखा नहीं दिया होता 

   

Friday 14 August 2015

झूठे सपने



झूठे सपने देखे क्यूं
ये तो टूट जाते हैं 
आज जिसे अपना कहेंगे
कल लोग भूल जाते हैं 

बंद हो जाए जब
जहां के दरवाजे
खामोश आवाजों की
दस्तक सुन पाते हैं 

मन में कुछ दिनों से
उठ रहा एक सवाल है
क्या इंसान इस तरह
जीता हर हाल है

यूं ही किसी तरह बस
गुजरा वक्त हर हाल है
उम्मीदों के पंख पर
तैरता साल दर साल है 
    
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...