Saturday 28 November 2015

इक ख्याल दिल में समाया है

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मुद्दत से इक ख्याल दिल में समाया है
धरती से दूर आसमां में घर बनाया है

मोह-माया,ईर्ष्या-द्वेष इंसानी फितरतें हैं
इनसे दूर इंसान कहाँ मिलते हैं

बड़ी मुश्किल से इनसे निजात पाया है
परिंदों की तरह आसमां में घर बनाया है

साथ चलेंगी दूर तक ये हसरत थी
आंख खुली तो देखा अपना साया है

‘राजीव’ उन्मुक्त जीवन की लालसा रखे
आसमां वालों ने जबसे हमसफ़र बनाया है 
    

Tuesday 10 November 2015

पृष्ठ अतीत की




मत खोलो  
पृष्ठ अतीत की
अब भी बची है
गंध व्यतीत की

शब्द-शब्द बोले हैं
रंग-रस घोले हैं
पृष्ठ-पृष्ठ जिंदा है
पृष्ठ अतीत की

फड़फड़ा उठे पन्ने
झांकने लगे चित्र  
यादों के गलियारों से  
पलकें हुईं भींगी
मत खोलो  
पृष्ठ अतीत की

अब भी बची है
व्यथा व्यतीत की 
    

Tuesday 3 November 2015

दास्तां सुनाता है मुझे

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जब कभी सपनों में वो बुलाता है मुझे
बीते लम्हों की दास्तां सुनाता है मुझे

इंसानी जूनून का एक पैगाम लिए
बंद दरवाजों के पार दिखाता है मुझे

नफरत,द्वेष,ईर्ष्या की कोई झलक नहीं
ये कौन सी जहां में ले जाता है मुझे

मेरे इख्तयार में क्या-क्या नहीं होता
बिगड़े मुकद्दर की याद दिलाता है मुझे


रुक-रुक कर आती दरवाजे से दस्तक
ये मिरा वहम है या कोई बुलाता है मुझे

उसको भी मुहब्बत है यकीं है मुझको
उसके मिलने का अंदाज बताता है मुझे

'राजीव’ तुम बिन बीता अनगिनत पल
शबे गम में रोज जलाता है मुझे 


    
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