Saturday 9 January 2016

जैसे हिलती सी परछाई

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याद अभी भी है वह क्षण
जब मेरे सम्मुख आई
निश्चल,निर्मल रूप छटा सी
जैसे हिलती सी परछाई

गहन निराशा,घोर उदासी
जीवन में जब कुहरा छाया
मृदुल,मंद तेरा स्वर गूंजा
मधुर रूप सपनों में आया

कितने युग बीते,सपने टूटे
हुए तिरोहित स्वप्न सुहाने
किसी परी सा रूप तुम्हारा
भूला वाणी,स्वर पहचाने

पलक आत्मा ने फिर खोली
फिर तुम मेरे सम्मुख आई
निश्चल,निर्मल रूप छटा सी
जैसे हिलती सी परछाई 
    
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