आबाद रहे बियाबान नहीं गुजरे
कोई उसे गूंगा बनाए लिए चलता है
इंसान का ये अपमान नहीं गुजरे
दिवास्वप्न दिखाने वाले कम तो नहीं
पतझड़ में वसंत का अवसान नहीं गुजरे
लहरों से क्या हिसाब मांगने निकले
डूबे हैं तट पर अपमान नहीं गुजरे
फरेबी चालों में नहीं उलझे 'राजीव'
कोई अभिमन्यु चक्रव्यूह से नहीं गुजरे |